मेरा नाम संजु है और मै 14 साल की हूँ। मैं कदम बढ़ाते चलो की युवा नेता हूँ। । मै अपनी मम्मी, पापा, भाई और दो बहनों के साथ राजपुर गांव, सोनीपत, हरियाणा मे रहती हूँ। मैं स्कूल में देखती थी कि मेरी सहेलियां थोड़ी सी अलग हैं, ज्यादातर चुप रहती थी। मैं ऐसा नहीं हूँ। मैं दूसरी लड़कियों से बहुत आसानी से दोस्ती कर लेती हूँ। जब मेने लड़कियों से दोस्ती की तो मुझे पता चला कि उनके मम्मी, पापा और घर के दूसरे लोग उनको कहते है कि साइड से चलो, नीचे देखकर चलो और ज्यादा मत बोलों।
पर मेरी मम्मी बोलती है कि सबके साथ बोलों । मेरे घर में मेरे पापा कभी नहीं कहते है कि तुम ऐसे मत करों वो बल्कि कहते है कि जो मन में आए अच्छे से करों। जब हम किसी काम के लिए घर के बाहर जाते है जैसे के.बी.सी. के काम के लिए तो पापा हमें कभी भी नहीं रोकते है। अगर मम्मी काम से लेट से आती है तो भी वह कभी कुछ नहीं कहते है।
मुझे पेड़ पर चढ़ना बहुत पसन्द है। जब मै स्कूल जाती हूँ तो खेतों में घुसकर मैं और मेरी बहन पेड़ पर चढ़ते हैं। गर्मियों में गवन्र्मेन्ट स्कूल के अन्दर जामून के पेड़ पर चढ़कर हम जामुन भी चुराते है। जब हम पेड़ पर चढ़ते है तो लड़के हमें देखकर कहते है, “देखो ये लड़की पेड़ पर चढ़ रही है”, तो मैं कहती हूँ, “तो क्या हुआ लड़कियां पेड़ पर नहीं चढ़ सकती?” एक बार यह कह दिया तो वह चुप हो जाते है। जब लड़की पेड़ पर चढ़ते है तो लोग कहते हैं “छोऱी तो बहुत इतराती है”, पर अगर लड़के पेड़ पर चढ़ते है तो कोई कुछ नहीं कहते है।
जो मेरे मन में आता हैं मै कर लेती हूँ, एक बार पक्का ठान लिया तो ठान लिया, जो मुझे सीखना है व मैं सीख लेती हूँ। जैसे जब हमने मेरे भाई से साईकिल चलाना सीख लिया। फिर मेरे मन में हुआ कि मैं स्कूटी सीख लूँ। तो मैंने स्कूटी सीख ली। अब मैं कार सीखना चाहती हुँ और सीख कर रहुँगी। उल्टी जम्प मेरे चाचा करते थे और मुझे भी बहुत मन किया कि मैं भी सीख लूँ। तब मैने उनसे उल्टी जम्प करना सीख लिया।
मन की बात बोलने का अधिकार सबको एक जैसा होना चाहिए पर मुझे पता है कि सबको ये अधिकार नहीं मिलता है| ज्यादातर लड़कियों को घर में और बाहर भी बोलने की आजादी नहीं होती।
22 फरवरी को हमारे गांव में के.बी.सी. के द्वारा एक कला उत्सव का आयोजन किया गया। गांव में लड़कियाँ घर से बाहर नहीं निकलती हैं पर वहाँ पर उस दिन लड़कियों की संख्या ज्यादा थी। उस दिन मैं ने देखा कि लड़कियां एक दूसरे को देखकर भी खुलकर बोल रही थी। हमारे गाँव में जो नुक्कड़ नाटक हुआ, उसके बाद हमें लगता है कि हमारे गाँव की औरतें काफी प्रभावित हुए है। जैसे आज हमारे साथ जो लड़कियों आई हैं उन्हें पहली बार उनकी मम्मीयों ने हमारे साथ खुद भेजा हैं।
18 फरबरी को भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय में युवा खेल उत्सव हुआ। वहाँ मैंने काफी लड़कों को रेस में हराया है। वहाँ पर लड़कियाँ रेस में भाग लेने के लिए मना कर रहे थे पर मैंने ऐसा नहीं सोचा। मैं ने हर गेम में पार्टिसिपेट किया और मैंने कोशिश की मैं जीत जाउँ ।
अब मै कुछ कपडे पहनने की रोकटोक पर कुछ कहना चाहती हुँ। हमारे पड़ोस में एक लड़की रहती है। उसकी नानी उसे लेगिंग पहनने नहीं देती हैं। बह सिर्फ सलवार पहनती है। कहते है कि उसकी टांग लेगिंग में दिखती है। हमारे घर पंहनावें में कोई रोक टोक नहीं है। हमारे गांव में छोटी छोटी लड़कियों को दुप्पटा जबरदस्ती पहनायी जाती है। एैसा क्यों होता हैं ? क्या हम लड़की हैं तो हम कुछ नहीं कर सकते है ?
हमें खेलना बहुत पसन्द हैं। हम रात को भी गलियों में खेलते हैं। हमें डर नहीं लगता है। केवल कुत्तों से डर लगता है लड़कों से नहीं। डरकर क्याहोगा ? एक दिन डरेगें तो रोज डरना पड़ेगा। बड़े होकर भी डरना पड़ेगा क्या? हमारें गांव की सुरक्षा ऑडिट में निकलकर आया था कि लड़कियां अपने आप को असुरक्षित महसूस करती हैं। क्योंकि स्कूल के पास एक शराब का ठेका है। लड़कियों ने यह भी कहा था कि वे इस बारें में खुलकर अपने मम्मीयों को नहीं बता पाती पर हम अपनी मम्मी को सब बता देते है। मैं शादी नहीं करना चाहती क्योंकि शादी के बाद कुछ करने का मौका नहीं मिलती हैं घर के कामों में उलझा देते है।
मैं बड़ी होकर टीचर बनना चाहती हूँ क्योंकि मुझे बच्चे बहुत पसन्द है। मेरी मम्मी भी पहले एक टीचर थी। मेरी मम्मी मेरी रोल मॉडल है – वही हमें सबकुछ सीखाती हैं। हम अपने आप को आज इतना आजाद महसूस करते हैं सिर्फ अपनी मम्मी की वजह से।